Friday, November 30, 2012

bahut din ho gaye..

बहुत दिनों  के बाद  अपना ब्लॉग देखा है ।   पासवर्ड याद नहीं था । 

 हम  सोच रहे हैं कुछ  लिखें । इस बार कहानी.. सोच जो  भावानाओ   और  ख़याल को  लोगों के लिए बिखेर देती है । नदी के खुले अस्तित्व - सा  जो स्वीकार्य है । मन  का वो सपना, हंसी की  सी उम्मीद की तरह - सा   वो एक ख़याल मेरा भी ।  जहाँ  वाक्य की लम्बाई भी  मुक़द्दर को खींचे.. अपनी उदासी को ज़ाहिर करने के बजाए .. !

 दिल तो मेरा हमेशा से कविताओं पर  ही अटकता है। मगर एक कोशिश तो कमोबेश की ही जा सकती है गुनगुनाने की  जगह गुनने  की ।

वैसे गद्य के लिए  हमारा मिजाज़  अंग्रेज़ी भाषा को ही पकड़ता है, लेकिन इस दफे  अपनी  भाषा में ।